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 जो लोग हमें ताने देते हैं, हमने तो बस चुप्पी साध ली है। बुराई में भी अच्छाई ढूँढते हैं, हमने तो सबको दुआ ही दी है। हम बुरे सही, मगर किसका द...

Sunday, 17 May 2020

क्यों टूट जाता इन का दम।

मज़दूर मजबूर है ग़रीब है
यह उसका कैसा नसीब है!

भूखा  प्यासा  हैरान  है वो
हद से ज़्यादा परेशान है वो!

उसे जाना है अपने गाँव में
छाले पड़े हैं उसके पाँव में!

मंज़िल भी कितनी बेरहम 
खेलती जैसे रोज नया गेम।

 जब दूरी रह जाती है कम
क्यों टूट जाता इन का दम।
s.aalam

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