मज़दूर मजबूर है ग़रीब है
यह उसका कैसा नसीब है!
भूखा प्यासा हैरान है वो
हद से ज़्यादा परेशान है वो!
उसे जाना है अपने गाँव में
छाले पड़े हैं उसके पाँव में!
मंज़िल भी कितनी बेरहम
खेलती जैसे रोज नया गेम।
जब दूरी रह जाती है कम
क्यों टूट जाता इन का दम।
s.aalam
No comments:
Post a Comment
Mdshahalam.ms36@gmail.com